न्यायपालिका के दुरुपयोग के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों उच्च जातीय समीकरण रखती हैं!

इतिहास को जानिए और सोचिए!!!

इतिहास के कुछ उदाहरण जरूर देखने चाहिए –
1. 2 मई 1973 को केंद्रीय मंत्री एस मोहन कुमारमंगलम ने संसद में बयान दिया – “निश्चितौर पर, सरकार के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम इस दर्शन को अपनाएँ कि क्या अगला व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का नेतृत्व करने लायक है या नहीं।”
2. उपर्युक्त बयान इसलिए दिया गया क्योंकि तीन जजों की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर इंदिरा सरकार ने ए एन रे को मुख्य न्यायाधीश बना दिया, जिसने इमर्जेंसी के दौरान जीने के अधिकार(मौलिक अधिकार) की हत्या कर दी। इस केस के फ़ैसले के दौरान विरोध में सिर्फ़ एक जज एच आर खन्ना थे।
3. जस्टिस एच आर खन्ना की बारी चीफ़ जस्टिस बनने की आई तो उनकी जगह इंदिरा सरकार ने एम एच बेग को सीजेआई बना दिया। ये जज भी जबलपुर केस की सुनवाई वाले बेंच में थे।
4. 1978 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एडीएम जबलपुर केस की आलोचना की तो बेग साहब ने स्वत: संज्ञान लेते हुए तब के संपादक श्याम लाल के ख़िलाफ़ अवमानना का मामला चला दिया।
5. जब इस मामले की सुनवाई हुई तो दो जजों ने केस को अवमानना लायक मानने से इनकार कर दिया।

6. फ़रवरी 1978 में एम एच बेग रिटायर हुए और उन्हें कांग्रेस के न्यूज़ पेपर नेशनल हेराल्ड के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में जगह दी गई।

7. 1988 में राजीव गांधी सरकार ने बेग साहब को पद्म विभूषण से अलंकृत किया

8. अब एक शख़्स बहारुल इस्लाम के बारे में जानिए। ये 1952 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1972 तक विभिन्न पार्टी पदों पर रहे। 1962 में कांग्रेस ने इस्लाम साहब को राज्यसभा भेजा। 1967 के असम विधानसभा चुनाव में इन्हें उम्मीदवार बनाया गया लेकिन ये जीत नहीं पाए। 1968 में इन्हें फिर राज्यसभा का टिकट मिला। 1972 में बहारुल इस्लाम ने राज्यसभा से इस्तीफ़ा दिया और सीधे इन्हें गोवाहाटी हाईकोर्ट का जज बना दिया गया। 1 मार्च 1980 को जनाब रिटायर हो गए।

9. 1980 में सत्ता में लौटते इंदिरा सरकार ने रिटायरमेंट के 9 महीने बाद बहारुल इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करवा दिया। साहब ने ही पहली बार धोखाधड़ी केस में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को क्लीनचिट दी।

10. बहारुल साहब ने रिटायरमेंट से 6 महीने पहले इस्तीफ़ा दिया और सीधे बारापेट लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भर दिया।

11. 1984 के सिख दंगों की जाँच के लिए राजीव सरकार ने रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में आयोग बनाया। इस आयोग को दंगों में एक भी कांग्रेसी नेताओं का रोल नज़र नहीं आया। इस काम का इनाम देते हुए कांग्रेस सरकार ने रंगनाथ मिश्रा को 1993 में नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन का पहला अध्यक्ष बनाया। 1998 में रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा गए। 2004 में कांग्रेस ने अल्पसंख्यक और एससी/एसटी कमीशन का चेयरमैन बनाया।
ऐसे उदाहरण तमाम हैं।

और अब मोदी सरकार भी उसी रास्ते पर खुलेआम चल रही है

रंजन गोगोई के माध्यम से!!

कोई अंतर नहीं है भाजपा और कांग्रेस में दोनों ही उच्च स्तरीय जातिवादी पार्टी हैं।।

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